वो एक नज़र सी बन गयी।।
वो एक नज़र सी बन गयी।
वो हमसफ़र सी बन गयी।
दीवार दिल का ढह गया,
सागर लहर सी बन गयी।
उपचार भी जिसका नहीं,
मानो ज़हर सी बन गयी।
ले ज़िन्दगी है चल पड़ी,
वो एक डगर सी बन गयी।
सूखे अधर भी रस भरे,
वो एक नहर सी बन गयी।
वो बन चली परछाइयाँ,
मेरी उमर सी बन गयी।
ना ढल रही ना चल रही,
वो एक पहर सी बन गयी।
ढाना सुकूँ देती रहे,
वो एक कहर सी बन गयी।
हर साख ख़ुशियाँ धार कर,
मानो शजर सी बन गयी।
दो बूंद शबनम की लिये,
भींगे अधर सी बन गयी।
काबू न धड़कन पर रहा,
मेरे जिगर सी बन गयी।
तू भटका जहाँ,
वो रहगुज़र सी बन गयी।